फिरंगी फलों से गुलज़ार देसी बाज़ार
उपेंद्र पाण्डेय/हरीश जोशी
दिन हैं उल्लासपूर्ण नवरात्रों के। घर-मंदिर-चौपालों और चौराहों पर दुर्गा जी की प्रतिमाएं और पंडाल सजे हैं तो बाजारों में सज गए हैं फलों के स्टाल। शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शुचिता और शुद्धता के इस पर्व का आधार है व्रत और फलाहार। आॅनलाइन मार्केटिंग और बिग बास्केट, बेस्ट प्राइज, वालमार्ट, बिग बाजार आदि सुपर स्टोर्स ने फलों के बाजार का नजारा बदल डाला है और साथ ही बदल गया है फलाहार का नजरिया।
चंडीगढ़ और दिल्ली के बाजारों में आप चाहे आॅनलाइन शापिंग कर रहे हों या दिल्ली के चांदनी चौक, चंडीगढ़ के सेक्टर 26 की मंडी, सेक्टर 27 के जैन मंदिर और सनातनधर्म मंदिर के चौतरफा फैले फलों के स्टालों पर शापिंग, सबसे ऊपर, सबसे ज्यादा सजे और फलों में भी वीआईपी विदेशी फलों की टोकरियां आपका ध्यान बरबस खींच लेंगी। अमेरिकी सेब, न्यूजीलैंड का आलू बुखारा, अमेरिकी बब्बूगोशा, सेब से भी दो गुना महंगे थाईलैंड के एक-एक किलो के साफ्ट गूदे वाले चिरंजीवी अमरूदों के इर्दगिर्द ही सिमट गई है फ्रूट मार्ट की रौनक। मजे की बात तो यह है कि फलों के साथ ही फलों के पुराने कारोबारी भी पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ के बाजारों के लिए इम्पोर्टेड सरीखे ही हैं। अलीगढ़ के सिकंदर और यूपी के गोंडा से 20 साल पहले आकर चंडीगढ़ में फलों का कारोबार फैलाने वाले सेक्टर 27 की जनता मार्केट के राजेश व मुन्ना कहते हैं कि साहब अब तो मोबाइल का जमाना है, लोकल और एसटीडी नहीं, अब आईएसडी फलों की पूछ है, यहां तो चड्ढी पहन के सेब चला है। जिस सेब ने चड्ढी न पहन रखी हो, उसका रेट वैसे भी आधा रह जाता है। चमकदार चटखरंग सेब की रंगत तभी रौनक बिखेर सकती है जब उसने चड्ढी पहन रखी हो। सेब तो साहब देसी हो या विदेशी, उगेगा पहाड़ों पर ही। पहाड़ों से उतर कर बिकेगा मैदानों की मंडियों में ही। पहाड़ी रास्तों पर ढुलाई के दौरान एक सेब के दूसरे सेब से रगड़ने पर दाग पड़ जाते हैं। इनसे बचाने के लिए नायलान की चड्ढीनुमा लंगोटियां अब सेब ही नहीं, हर कीमती फल को पहनाई जाने लगी हैं। इसी के साथ बढ़ गई है चड्ढी पहने फल की पूछ और उनकी कीमत।
सेब, बब्बूगोशा और आलू बुखारा देसी भी हैं और विदेशी भी। सबसे ज्यादा फर्क उनकी पैकेजिंग और प्रेजेंटेशन का पड़ता है। नवरात्रों से एक पखवाड़ा पहले ही मुंबई पोर्ट से लेकर दिल्ली-चंडीगढ़ तक की सड़कों पर एयरकंडीशन ट्रकों की आवाजाही दोगुनी हो जाती है। विदेशी फल जहाजों से पहले मुंबई उतरते हैं। फिर एयरकंडीशन ट्रकों में उन्हें दिल्ली लाया जाता है। दिल्ली से चंडीगढ़ और पंजाब, हरियाणा का रुख करते हैं यह फल। जब पैकेजिंग शानदार होगी और सफर एयरकंडीशन का तो, सात समंदर पार से आने वाले फलों के नखरे और भाव तो खास होंगे ही। हिमाचल और कश्मीर के सेब, आलूबुखारा व बाबूगोशा की सप्लाई नवरात्रों तक इतनी हो ही नहीं पाती कि मार्केट की डिमांड पूरी कर सकें। मुंबई ही नहीं, चीन और नेपाल में बैठे विदेशी कारोबारियों की निगाह नवरात्रों पर लगी रहती है और वे दुनिया भर से फलाहार जुटाकर खूब पुण्य कमाते हैं माता रानी के भक्तों की कृपा से।
नवरात्र के इस उल्लासपूर्ण मौसम में फलों के बाजार में टोकरियां भी आम और खास। खास वीआईपी फ्रूट्स की टोकरियों में आजकल सजे हैं न्यूजीलैंड के कीवी, थाईलैंड के अमरूद, अमेरिकी अंगूर और कश्मीरी-किन्नौरी सेब को मुंह चिढ़ाते विदेशी सेब। सेब की बात करें तो चाइनीज फ्यूजी को सीजनल रिफ्यूजी समझो, लेकिन अमेरिकी वाशिंगटन हमेशा टनाटन। किन्नौरी का सीजन तो आन पड़ा है, कश्मीरी सुर्ख आधा चंडीगढ़ की मंडियों में और आधा रास्ते में। चंडीगढ़ से लेकर दिल्ली तक के बाजारों में इस समय सुर्ख लाल कश्मीरी सेब से लेकर गहरे लाल अमेरिकी और हल्के व्हाइटिश पिंक चाइनीज एप्पल तक के रंग छाये हुए हैं।
चंडीगढ़ के सेक्टर 27 की जनता मार्केट में रमेश फ्रूट शाप और सिकंदर फ्रूट कार्नर पर फलों को टोकरियां भी आम-ओ खास हैं। अभी कुछ दिनों पहले तक वीआईपी टोकरियों में एक-एक किलो के विदेशी अमरूद छाए रहते थे, अब उन टोकरियों में एक ओर अमेरिका से आया वाशिंगटन एप्पल कब्जा जमाए है तो दूसरे कोने में चाइनीज फ्यूजी देसी सेबों पर रोब झाड़ रहा है। सिकंदर फ्रूट कार्नर के राम अवतार कहते हैं कि किन्नौरी सेब का कारोबार इस बार बेहतर होने की उम्मीद है, हालांकि कश्मीरी सेब भीतर से बड़ा नरम होता है, चाहे नन्हे बच्चे खाएं या बिना दांत के बुजुर्ग। लेकिन उधर घाटी में गड़बड़ी से सेब की आमद पर फर्क पड़ा है और कश्मीरी सेब डेढ़ सौ रुपये तक पहुंच गया है।
रमेश फ्रूट मार्ट पर टोपी वाले चीनी की फोटो वाला आनेस्ट मैन ब्रांड चाइनीज फ्यूजी दो सौ रुपये में भी लोगों को सस्ता लग रहा है। इसी तरह यूएसए 4015 रेड ब्रांड का अमेरिकी वाशिंगटन एप्पल ढाई सौ रुपये किलो में भी लोग हाथोंहाथ ले रहे हैं। इसकी खासियत है लंबे समय तक स्वाद रसीला बना रहना और कुछ-कुछ स्टेटस सिंबल भी। रमेश व मुन्ना कहते हैं कि एक-एक किलो के व्हाइट अमरूद थाईलैंड से आकर 300 रुपये किलो तक बिकते हैं, जिन्होंने इलाहाबादी अमरूदों को बहुत पीछे छोड़ दिया। थाईलैंड के रेड अमरूद सेब से चार गुनी कीमत पर 700 रुपये किलो तक बिक रहा है।
शादीब्याह में डेकोरेशन के लिए इस खूबसूरत अमरूद ने कश्मीरी सेब को भी मात दे रखी है। यूएसए का अंगूर भी 500 रुपये किलो तो देसी अधिकतम 100 रुपये तक बिकता है। अभी बाजार में अमेरिकी अंगूर पाकिस्तान से दो दिन पहले आया 300 रुपये किलो के रेट से बिका। अभी पाकिस्तानी अंगूर दो तीन चक्कर आएगा, तब तक देसी अंगूर तैयार हो जाएगा, जिससे रेट 100 रुपये से नीचे
आ जाएंगे। चंडीगढ़ के सेक्टर 29 डी मार्केट के प्रधान हरीश चंद्र ने बताया कि इस समय विदेशी फलों में जेसपेरी कीवी की डेंगू के चलते जबरदस्त मांग है। 40 रुपये पीस के हिसाब से बिक रही है। 36 पीस की पेटी 650 रुपये की थी, आज इसका मंडी में रेट 1050 पहुंच गया है। जेसपरी ग्रीन न्यूजीलैंड से आता है और लोगों का मानना है कि डेंगू बुखार में यह कीवी प्लेटलेट बढ़ाने का सबसे अच्छा
जरिया है।
एक किलो का अमरूद
एक किलो का अमरूद! आप चौंक गए होंगे। मंडियों में आ रही अमरूद की यह संकर किस्म तैयार की है छत्तीसगढ़ के रायपुर के गांव गोमची के एक प्रगतिशील किसान डॉ. नारायण चावडा ने। थाइलैंड व भारतीय अमरूद की इस ‘वीएनआर बिही’ नामक संकर किस्म की देशी व विदेशी मंडियों में इन दिनों खूब मांग है। इस अमरूद में बीज कम हैं और 15 दिन तक यह तरोताजा बना रहता है परंतु कोल्ड स्टोर में रखने पर महीनेभर तक खराब नहीं होता।
इस किस्म की एक और खासियत यह है कि यह ऊष्ण क्षेत्रों व सूखी जमीन में भी सालभर भरपूर फल देती है।
अमरूद की यह अनोखी किस्म तैयार करने का डॉ. नारायण का सपना पिछले साल साकार हुआ था। सपना साकार होने में कोई चार साल लग गए। उन्होंने ग्राफ्टिंग तकनीक से यह संकर किस्म तैयार की। उन्होंने पपीते की ‘विनायक’ नामक एक नयी किस्म भी तैयार की है जो स्वाद और आकार में बेजोड़ है।
सूरत के एक किसान प्रवीण देसाई भी एक किलो से ज्यादा वजनी अमरूद अपने बगीचे में पैदा कर रहे हैं जो मंडियों में आते ही बिक जाता है। यह अमरूद आर्गेनिक है और बीज-रहित भी। बेहद मीठे और स्वादिष्ट इस अमरूद के एक पेड़ में हर माह करीब 5 किलो फल लगता है। डॉ. नारायण की तरह उन्होंने भी कलम लगाकर यह किस्म तैयार की है। उन्होंने अनार की भी एक विशेष किस्म तैयार की है जो वजनी और रसीली है। कृषि वैज्ञानिक डॉ. नारायण ने ‘वीएनआर’ ग्रीन हाऊस तैयार किया है जिसमें अमरूद की इस विशेष किस्म को बढ़ावा देने के लिए पौधे तैयार किए जाते हैं और पास-पड़ोस के बागवान किसानों को सुलभ कराये जाते हैं। उनका ‘वीएनआर बिही आर्चर्ड’ कई एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है।
इस बगीचे में आधे से लेकर एक किलो तक के अमरूदों से पेड़ लदे रहते हैं। अपने बड़े आकार, मीठे स्वाद और गुणवत्ता के चलते रायपुर और सूरत के किसानों के इन कलमी अमरूदों की भारतीय और विदेशी बाजारों में आजकल खूब मांग है। भारतीय मंडियों में 400 से 700 ग्राम वजनी ताइवानी अमरूद व थाइलैंड के आधे से एक किलो तक के अमरूद भी इन दिनों लोगों की पसंद बने हुए हैं जो खुशबू, स्वाद और पोषक तत्वों से भरपूर हैं। मंडियों में सीआईएसएच, लखनऊ द्वारा विकसित ‘ललित’ अमरूद भी ग्राहकों की पसंद बना हुआ है। इस अमरूद का एक दाना 250 से 300 ग्राम तक का है। 200 ग्राम तक का ‘इलाहाबाद सफेदा’ भी लोगों को भा रहा है।
913 किलो का कद्दू
यह बानगी है उन रिकार्ड बड़े आकार के फलों व सब्जियों की जो विशेष रूप से कृषि व फल उत्पाद प्रतियोगिताओं को ध्यान में रखकर उगाए गए। साल 2009 की बात है जब अमेरिका के हवाई में जार्ज एवं मारग्रेट नामक दो किसानों ने 35 किलो वजनी कटहल उगाया। 1998 में अलास्का के जान इबान्स ने 34.4 किलो की पत्ता गोभी उगाकर वाहवाही लूटी तो इसी वर्ष उन्होंने रिकार्ड 8.5 किलो का गाजर उगाकर गिनीज बुक में नाम दर्ज कराया। ज्यादा समय नहीं हुआ जब 2012 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की जेनसन ने 913 किलो भारी कद्दू उगाकर कृषि वैज्ञानिकों को चौंका दिया। एक अन्य किसान लायड ब्राइट ने 122 किलो का तरबूज उगाया तो इस्राइल के किसान शेमोइल ने 5.2 किलो का नीबू उगाया।